एकादशी की तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित रहती है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना करने से सारे कष्ट, रोग, दोष समाप्त हो जाते हैं और मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती है. वही आषाढ़ महीने की पहली एकादशी योगिनी एकादशी कहलाती है. योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखने से पृथ्वी पर सभी तरह के सुख प्राप्त होते हैं और इस दिन दान करने से 84000 ब्राह्मण को भोजन कराने के बराबर फल की प्राप्ति होती है. तोह आईये देवघर के ज्योतिषआचार्य से जानते हैं कि कब है योगिनी एकादशी, इस दिन क्या शुभ संयोग बन रहा है?
क्या कहते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 के संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा कि आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी एकादशी कहलाती है. इस साल 2 जुलाई को योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. रोगियों के लिए यह एकादशी बेहद शुभ मानी जाती है. क्योंकि इस एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करने से शुभफल की प्राप्ति होती है. इस साल योगिनी एकादशी के दिन बेहद खास योग का निर्माण होने जा रहा है. योगिनी एकादशी के दिन धृति और शूल योग के साथ कृतिका नक्षत्र भी रहने वाला है जो इस तिथि को और भी शुभ बनाता है. इसलिए योगिनी एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अवश्य करें.
कब से हो रही है एकादशी तिथि की शुरुआत:
योगिनी एकादशी तिथि की शुरुआत 1 जुलाई सुबह 10बजकर 12 मिनट से होने जा रहा है. इसका समापन अगले दिन यानी 2 जुलाई सुबह 09 बजकर 23 मिनट में हो रहा है. उदया तिथि को मानते हुए एकादशी का व्रत 2 जुलाई को ही रखा जाएगा. 02 जुलाई सुबह 05 बजकर 11 मिनट से लेकर 08 बजकर 43 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहने वाला है.
एकादशी पूजा के नियम :
एकादशी तिथि में भगवान विष्णु की विधि विधान के साथ पूजा आराधना की जाती है. एकादशी तिथि के 1 दिन पहले सात्विक भोजन करना चाहिए. नाखून दाढ़ी बाल आदि एकादशी के 1 दिन पहले ही कटवा लें. अगले दिन यानी एकादशी तिथि के दिन चावल का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिए और व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा आराधना करें. एकादशी तिथि के दिन रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए इससे लक्ष्मी नारायण प्रसन्न होते हैं. घर में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है. वही एकादशी का पारण का बेहद खास महत्व होता है. एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को सुबह स्नान कर सूर्य भगवान को जल अर्पण कर ही पारण करना चाहिए. तुलसी का पत्ता प्रसाद के रूप में ग्रहण कर एकादशी का पारण करें.