पाकिस्तान के एक गांव में 60 साल की एक रिटायर्ड प्रिंसिपल अपनी सात बेटियों के साथ रहती है।
इसमें से छह बेटियां यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं। इसके बावजूद इन सभी को वोट डालने के लिए अपने घर के पुरुषों की मंजूरी लेनी होगी।
यह तल्ख सच्चाई पाकिस्तान के कई ग्रामीण इलाकों की है। गौरतलब है कि पाकिस्तान में आठ फरवरी को चुनाव होने वाले हैं। इस बार यहां पर महिलाओं को चुनाव में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
पाकिस्तान चुनाव आयोग ने महिलाओं के लिए पांच फीसदी सीटों की अनिवार्यता तय कर दी है। वहीं, इस बार 3000 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में दांव आजमा रही हैं।
जिस महिला का जिक्र ऊपर हुआ है उसका नाम नई कौशीर है। समाचार एजेंसी एएफपी के साथ बातचीत में उन्होंने कहाकि चाहे पति हो, पिता हो, भाई हो या बेटा हो, महिलाओं के ऊपर किसी न किसी रूप में पुरुषों का वर्चस्व है।
उन्होंने कहाकि असल में यहां पर पुरुषों के अंदर इतना साहस ही नहीं है कि वह महिलाओं को वोट डालने का अधिकार दे सकें।
हालांकि पाकिस्तान में भी वोट देना वयस्कों का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन तमाम ग्रामीण इलाकों में आज भी पुरुषों का वर्चस्व कायम है।
पाकिस्तान स्थित पंजाब में तो 50 साल पहले पंचायत के एक फैसले का आज भी पूरी कट्टरता से पालन होता है। यह फैसला भी यहां की महिलाओं के वोट देने के अधिकार को लेकर ही किया गया था।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में आठ फरवरी को होने जा रहे संसदीय और प्रांतीय विधानसभा चुनावों के लिए 3,000 से अधिक महिला उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल किया है।
देश में चुनाव सुधारों के जरिए आरक्षित सीटों के अलावा सामान्य सीटों पर महिला उम्मीदवारों का पांच फीसदी प्रतिनिधत्वि सुनश्चिति करना भी अनिवार्य किया गया है।
पिछले कुछ वर्षों में सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ने वाली महिला राजनेताओं की संख्या में वृद्धि भी हुई है, लेकिन संसद में पुरुष सांसदों की तुलना में यह अब भी बहुत कम है।
वहीं, इस बार भी विभिन्न दलों ने अच्छी-खासी संख्या में महिलाओं को टिकट दिया है।