नई दिल्ली । कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को एक और पत्र लिखकर ग्रेट निकोबार द्वीप में मेगा इन्फ्रा परियोजना को दी गई मंजूरी पर फिर से विचार करने को कहा है। कांग्रेस महासचिव ने ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी पर पुनर्विचार करने के लिए सौंपे गए एक उच्चस्तरीय समिति के आचरण, संरचना और निष्कर्षों पर भी आपत्ति जाहिर की है।
जयराम रमेश ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का यह इनकार करना कि निकोबार परियोजना क्षेत्र का कोई भी हिस्सा निर्माण के लिए प्रतिबंधित तटीय क्षेत्रों में आता है, एक नाटकीय यू-टर्न था। उन्होंने पूछा कि प्रस्तुत नए तथ्यों पर क्या विश्वास किया जा सकता है? केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ग्रेट निकोबार द्वीप बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए दी गई मंजूरी ने द्वीप तटीय विनियम क्षेत्र अधिसूचना, 2019 का उल्लंघन नहीं किया है। इसमें यह भी कहा गया कि परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी पर पुनर्विचार करने के लिए एनजीटी के आदेशों का पालन किया गया है। सरकार के इस स्पष्टीकरण के बाद ही जयराम रमेश ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखा था।
रमेश ने कहा कि वह आश्चर्यचकित थे कि एनजीटी की ओर से लचीलापन देने के बावजूद एचपीसी ने किसी स्वतंत्र संस्थान या विशेषज्ञों के साथ बात नहीं की। एचपीसी में नीति आयोग के सदस्य परियोजना की कल्पना करने वाले लोग, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम जो परियोजना को लागू कर रहा था और पर्यावरण मंत्रालय जिसने मंजूरी दी थी शामिल थे।
जयराम रमेश ने कहा कि एचपीसी ने भी एनजीटी के निर्देशों को कमजोर कर दिया और परियोजना की मंजूरी और पर्यावरणीय मुद्दों का कोई सार्थक और व्यापक पुनर्मूल्यांकन नहीं किया। इसके अलावा, उन्होंने मंत्रालय के एचपीसी की रिपोर्ट को गुप्त रखने के तर्क पर भी सवाल उठाया। रमेश ने कहा कि मैं इसे नहीं समझता, जब मंजूरी देने की मूल प्रक्रिया को ही अधिकार प्राप्त और गोपनीय के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था, तो कैसे एक समीक्षा जो भी त्रुटिपूर्ण हो और वह भी अदालत ने अनिवार्य की हो, इस प्रकार वर्गीकृत की जा सकती है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ग्रेट निकोबार द्वीप में मेगा इन्फ्रा परियोजना को दी गई मंजूरी पर सवाल उठाया
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