Home धर्म कब है पुत्रदा एकादशी? क्या है इस व्रत का महिष्मति राज्य से कनेक्शन! काशी के ज्योतिषी से जानें सब

कब है पुत्रदा एकादशी? क्या है इस व्रत का महिष्मति राज्य से कनेक्शन! काशी के ज्योतिषी से जानें सब

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वैदिक हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 24 एकादशी के व्रत होते हैं. यानि हर महीने 2 बार एकादशी का व्रत होता है. वैसे तो हर एकादशी व्रत का अपना विशेष महत्व है. लेकिन सावन महीने की शुक्ल पक्ष के एकादशी व्रत की खासी महिमा है. इसे पुत्रदा एकादशी के नाम से जानते हैं. इस दिन पूजा और व्रत का अपना विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखा जाता है.इस व्रत का सीधा कनेक्शन द्वापर युग से जुड़ा है.

काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि सावन शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त को सुबह 6 बजे से होगी. जो अगले दिन यानी 16 अगस्त को सुबह में 5 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगा. ऐसे में पुत्रदा एकादशी का व्रत 15 अगस्त गुरुवार के दिन रखा जाएगा.

ऐसे करें पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस दिन सिंहासन पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की तस्वीर रखकर उन्हें पुष्प, पीला पेड़ा अर्पण करना चाहिए. इसके बाद घी का दीपक जलाकर उनकी पूजा करनी चाहिए.

पुत्रदा एकादशी पर दान का महत्व
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि पुत्रदा एकादशी पर वस्त्र, अन्न-धन, तुलसी के पौधे और मोर पंख का दान बेहद शुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि पर दान और पुण्य करने से घर में हेमशा सुख-समृद्धि का वास बना रहता है. साथ ही जीवन भर आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. इसके साथ ही मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाती हैं. ऐसे में क्षमता अनुसार इस तिथि पर कुछ न कुछ अवश्य दान करें.
कैसे शुरू हुआ पुत्रदा एकादशी का व्रत?
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार महिष्मति राज्य के राजा महीजित को कोई संतान नहीं थी. वे बड़े ही पुण्य का काम करते थे. संतान न होने से नाराज राजा ने अपने प्रजा और ब्राह्मणों की एक बैठक बुलाई. ब्राह्मण और प्रजा दोनो ने इस समस्या के निजात के लिए तप शुरू किया इस दौरान उन्हें लोमस ऋषि मिले. जिन्होंने इस समस्या के लिए सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत रखने की बात कही. जिसके बाद राजा,प्रजा और ब्राह्मणों ने इस व्रत को रखा.जिसके प्रभाव से राजा महीजित को संतान की प्राप्ति हुई.

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